हमेशा कि तरह, आज भी समंदर किनारे बैठा था वो । याद कर रहा था किसी को, जो उसे भुलाकर कहीं दूर चली गई थी । रेत में यूं मायूस बैठे बैठे उसे याद आया एक अजी़ज़ दोस्त ने सुनाया हुआ एक शेर -
"समंदर किनारे बैठ यूंही रेत में फेर रहा था उंगलियां,
गौर से देखा तो तेरी तस्वीर उभर आयी थी .. "
आह!
उस दिल से निकली आह का कुछ ये बन गया:
हाय! खू-ए-दिल मेरा प्यार बन गया
हाय! खून-ए-दिल खू-ए-यार बन गया
जब खो गया सपना, अश्कबार बन गया
उस ग़म में ये जहां एक मझार बन गया
हाल-ए-दिल छुपाया तो हम 'बदमाश' हो गये,
जो किया इजहार तो मैं गुनहगार बन गया
वो दिन था कि चली थी नसीम चमन में,
एक ये दिन है कि नफस तूफान बन गया
-- मंदार.
[खू = आदत; अश्कबार = अश्क बहानेवाला;
मझार = कब्र; नसीम = सुहानी हवा; नफस = सांस]
Wednesday, November 29, 2006
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3 comments:
are bas... mi ghabarlo, tula yevdhe yete urdu??
Jindagi ko Bhi Muuha Dikhana Hai
Ro Chuke Tere Ashka Bar (अश्कबार) Bahut
Faiz
baap ...its too good...liked this one the most
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